शुक्रवार, 22 सितंबर 2017

ऑनलाइन कत्थक- 4

कत्थक एक भारतीय शास्त्रीय नृत्य है यह उत्तरी भारत से उत्पन्न हुआ और यह भारतीय संस्कृति में आठ शास्त्रीय नृत्य रूपों का हिस्सा है जो प्राचीन भारत के उत्तरी क्षेत्र में खासकर प्रचलित थी। कत्थक नृत्य नाम पड़ा कथक जाति के लोगो के नाम पर कथक जाति के लोग बड़े मंदिरों में अपने प्रदर्शन को प्रदर्शित करने के लिए श्री विशेष रुप से पौराणिक पात्रों की कहानियां और प्रासंगिकता के साथ वाली कहानियों को धार्मिक शास्त्रों से लेकर लोगों के बीच प्रदर्शित करते थे।ये अपनी कहानियां हाथ और शरीर के मुद्राओं और इशारों से प्रस्तुत करते थे। उनकी अभिव्यक्तियों में चेहरे पर आस्था के भाव से वह अधिक सम्मोहक और भीड़ खींचने में सक्षम थे। वह कथाओं को संगीत और नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत करते थे।
कथक के वर्तमान रूप में आज कई तरह के कई विशेषताओं को शामिल किया गया था। इसमें कुछ बदलाव भक्ति आंदोलन के द्वारा हुए। 16वीं शताब्दी के दौरान कत्थक नृत्य द्वारा श्याम को सूचित किया गया था, जबकि मुगल युग के दौरान मध्य एशियाई नृत्य प्रभाव को नृत्य में शामिल किया गया था। अभी मुख्य रूप से 3 घराने हैं जो कथक के कलाकारों की वंशावली को निर्धारित करते हैं। यह घराने हैं ।
लखनऊ घराना
जयपुर घराना और
बनारस घराना।
जयपुर घराना राजपूत के राजाओं की अदालतों से बाहर पैदा हुआ था। नवाबों की वजह से लखनऊ घराना और बनारस के नवाबों के कारण बनारस कथक के घराने का उदय हुआ था।
कत्थक का यह वर्तमान रूप अपने इतिहास के दौरान अवशोषित विभिन्न प्रभाव का एक मिश्रण है। इसका मतलब यह है कि मंदिर पौराणिक और धार्मिक पहलुओं के साथ रोमांटिक और श्रृंगार के साथ कई तरह के पहलुओं को यह नृत्य प्रस्तुत करता है। कत्थक की पहचान इसके पदाघातों से होती है जो इसकी सबसे बड़ी खासियत भी है, जिसे हम ततकार कहते हैं। इस नृत्य शैली में घुँघरू की ध्वनि की ओर अधिक ध्यान दिया गया है।कत्थक नृत्य करने के लिए आपको घुँघरू पर पूरा अधिकार होना चाहिए और उसके लिए आपको निरंतर अभ्यास करना पड़ेगा। ज्यादा अच्छा है कि आप अभ्यास तबला के साथ करें या  लहरा के साथ। आज कल कई ऐप्प मौजूद हैं लहरा के जो आपके काफी काम आ सकती हैं। तत्कार के पैर में विभिन्नता लाने के लिए आपको कुछ अलग तरह के बोल रचनाओं का अभ्यास करना होगा। पिछले पाठ्यक्रम में हमने सीखा था कि तत्कार कैसे करना है । आज कुछ पदघातों का समूह नीचे दे रही हूं जिनका नित्यप्रति अभ्यास करें । यह पदघातों का समूह लक्ष्मी नारायण गर्ग द्वारा लिखी पुस्तक कथक नृत्य से लिया गया है। पैरो से दा यानि दायां पैर को सूचित किया गया है और बा यानि बायां पैर सूचित किया गया है।

1. दा बा दा बा, दा बा दा बा, दा बा दा बा, दा बा दा बा ।

2.बा दा बा दा, बा दा बा दा, बा दा बा दा, बा दा बा दा ।

3.दा बा दा दा, बा दा बा बा, दा बा दा दा, बा दा बा बा ।

4. दा बा दा, दा बा दा, दा बा - दो बार

5. बा दा बा, बा दा बा, बा दा - दो बार

6. दा बा दा बा, दा दा दा बा - दो बार

7.बा दा बा दा, बा बा बा दा - दो बार

8. दा बा बा दा, दा बा बा दा - दो बार

9.दा बा -- दा, दा बा -- दा - दो बार

10.बा दा -- बा , बा दा -- बा - दो बार

सोमवार, 18 सितंबर 2017

शरीर का शास्त्र और नृत्य

शरीर का शास्त्र और नृत्य 
नृत्य सिखाने के दौरान मुझे एक समस्या ने हमेशा परेशान किया है। मेरे यहां नृत्य का प्रशिक्षण लेने आने वाली अधिकांश लड़कियों में झुक कर खड़े होने की प्रवृति होती है। किसी -किसी में यह बेहद माइनर होता है पर फिर भी नृत्य में इसका प्रभाव पड़ता है। कुछ लड़कियां तो इतने बुरे ढंग से खड़ी होती है या स्टेप लेती हैं कि पहले नृत्य सिखाना छोड़ मुझे खड़े होने या चलने के तरीके को सिखाना पड़ता है। सिखाने से कभी मुझे प्रॉब्लम हुई भी नहीं है पर सभी लड़कियां गलत तरीके से क्यों खड़ी होती है!! यह सवाल मेरे मन में जरूर आता है। फिर मैंने सोचा तो पाया कि जब मैं नृत्य का प्रशिक्षण लेती थी उस दौरान मेरा भी बॉडी पोस्चर बेहद खराब थी। हालांकि यह मुझसे किसी ने कहा नहीं क्योंकि नृत्य का प्रशिक्षण मैंने पुरुष नर्तक से लिया है और या तो उनका ध्यान नही होगा या समाज की व्यवस्था ने उन्हें कभी कहने का साहस नही दिया होगा । तो इस बारे में मुझे कुछ पता नही। पर मेरे खराब पोस्टर की बात मुझे अपने तस्वीरों या डांस के वीडियो से पता चली तो धीरे - धीरे मैंने इस पर काम किया और खुद में सुधार किया।भारत में हमारी लड़कियों की परवरिश कुछ इस ढंग से होती है कि उनके उठने और बैठने का तरीका काफी प्रभावित होता है। हमें बचपन से ही हर बात के लिए टोका जाता है... इस तरीके से क्यों बैठी हो, पैर पे पैर क्यों चढ़ा रखा है, दुप्पटा क्यों नहीं ओढ़ती, दुप्पटा गले में क्यों डाल रखा है, वगैरह-वगैरह। इस वजह से हमारा रहन-सहन काफी प्रभावित होता है। लड़कियों के अंदर बेहद गलत तरीके से उठने और बैठने की आदत पड़ चुकी होती है। आपने ध्यान दिया होगा कई फैमिलियों में जहां पर बचपन से ही लड़कियों को कोई कपड़े पहनने या किसी काम पर रोक-टोक नहीं होती वे बेहद सीधे तरीके से चलती है या बिंदास बातें करती हैं। उनका बॉडी पोस्चर वैज्ञानिक तरीके से ज्यादा सही होता है उनके मुकाबले जिनको हर बात के लिए टोका जाता है। ऐसा लिखकर मैं यह नहीं कहना चाहती हूं कि दुपट्टा लेने से या शरीर को ढक कर रखने से आप का पोस्टर खराब होता है। पोस्चर खराब होता है बेवजह टोका-टाकी करने से! क्योंकि जब हम एक लड़की को बचपन में टोकते हैं कि ऐसे क्यों बैठी हो तो वो लड़की डर या शर्म से अपने कंधों को सामने की तरफ ज्यादा झुका लेती है या अपने शरीर को सिकोड़ती है। और फिर यह क्रिया आदत के रूप में धीरे-धीरे हमारे शरीर को जकड़ लेती है और हमारा पोस्चर खराब दिखने लगता है। आप निम्न तस्वीर देख कर अच्छी सरंचना और बुरी संरचना में अंतर समझ सकते हैं।

खराब पोस्चर

नॉर्मली लडकियां इसी पोस्चर से खड़ी होती हैं जिनसे नृत्य का पोस्चर भी खराब लगता है।
सही पोस्चर

इस तस्वीर में आपने देखा कि सही पोस्चर क्या है। इस सही पोस्चर को बनाने के लिए आपको दीवाल में चिपक कर खड़ा होना होगा। जिसमें आपका हिप, कंधे का पिछला हिस्सा और सिर का पिछला हिस्सा दीवाल में स्पर्श करता हुआ होगा। यह पोस्चर जब आप दीवाल में खड़े हो कर बनाएंगे तो अगर पाएंगे कि आप को असुविधा हो रही है तो आपका पोस्चर गलत रहा है। इस पोस्चर का प्रयोग आप चलने , खड़े होने या नृत्य में कीजिये तो आप बेहतर नर्तक बन सकते हैं।अच्छे आसन के हमारे सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद कभी-कभी आप झुकने से बच नहीं सकते जब आप बागवानी या कोई काम कर रहे हो जिस पर आपको अपने शरीर को मोड़ना पड़ता है तो घुटनों के झुकाव और अपनी पीठ को सीधा रखना सुनिश्चित करें और सीधे बैठे। अगर कोई चीज उठा रहे हैं उस चीज को उठाते समय अपने शरीर को सीधा रखें।गोलाकार पीठ के साथ उठाने से आपके रीड की हड्डी पर अनचाहा दबाव पड़ सकता है जो आपके पीठ को घायल कर सकता है। इसलिए उठने बैठने में भी पोस्चर का ध्यान रखें।
कई तरह के अनुसंधानों ने उन तरीकों की पहचान की है जो महिलाओं को दर्शकों की नजर में अच्छे नर्तक बनाता है। और उन अनुसंधानों का कहना है कि अच्छा नर्तक बनने के लिए आपको कमर और कूल्हों का इस्तेमाल ज्यादा करना होगा। अध्ययन में पाया गया है कि जो महिलाएं हिप बीटिंग का इस्तेमाल नृत्य को प्रदर्शित करने के लिए करती हैं,उनकी तरफ दर्शक ज्यादा आकर्षित करते होते हैं,बजाय उनके जो अपने हिप या कमर का इस्तेमाल नृत्य में बिल्कुल नहीं करते या इसे स्थिर रखते हैं। यह भी पाया गया कि पैरों/जांघो या हाथ और शरीर के बाकी गतिविधियों दोनों का संतुलित प्रयोग महिला नर्तकी के लिए प्रभावशाली माना गया है।इनका उचित प्रयोग उन्हें एक अच्छा नर्तक बनाता है।जो नर्तक अपने नृत्य में कूल्हों का इस्तेमाल कम करते हैं या हाथ और पैरों की गतिविधियां शरीर से काफी दूर-दूर और अजीब तरीके से रखते हैं, उन्हें हम बुरा नर्तक ही कर सकते हैं। इसके विपरीत अगर महिला नर्तकों ने अपने कूल्हों का इस्तेमाल या कमर का इस्तेमाल ज्यादा किया, पैर और हाथों का संतुलन बेहतर तरीके से सामंजस्य से किया तो उनका नृत्य अच्छे नृत्य की श्रेणी में आएगा। अब सवाल यह है कि हिप बीटिंग या कमर का इस्तेमाल एक महिला नर्तकी को अच्छा क्यों दिखाता है शायद इसलिए क्योंकि यह क्रिया उनके स्त्रीत्व को प्रदर्शित करने में सहायता करती है। और स्त्री का स्त्री होना ज्यादा खूबसूरत होता है कभी भी। 
अब नृत्य किसे करना चाहिए या किसमे अच्छा लगेगा ? हर इंसान का अपना अनुवांशिकी होता है, जो उनके शरीर का प्रकार निर्धारित करता है। शरीर के विभिन्नता के बावजूद अगर कोई व्यक्ति चल सकता है, और कड़ी मेहनत करने को तैयार है तो वह नृत्य कर सकता है। कोरियोग्राफर और कोरियोग्राफिक कंपनी के मालिक नर्तको की प्रतिभा के आधार पर नौकरी देने से ज्यादा उनके बॉडी स्ट्रक्चर की खूबसूरती और लुक्स पर भी  ज्यादा फोकस करते हैं, और उन्हें अपने यहा नौकरी देते हैं। इस बात को अगर आप समझ लें तो आप जितनी मेहनत अपने नृत्य को निखारने में करेंगे उतनी मेहनत आप बॉडी स्ट्रक्चर और लुक्स को भी निखारने में करेंगे। नृत्य शरीर के माध्यम से आत्मा का प्रतिनिधित्व करता है यह नृत्य के सौंदर्यशास्त्र के साथ हमारी छवि और संस्कृति से जुड़ा हुआ होता है। आपके शरीर का प्रकार/शरीर का टाइप यह निर्धारित करता है कि आप को कौन सा आहार लेना चाहिए। या कौन सा बॉडी पोस्चर आपके लिए ज्यादा बेहतर काम करेगा। यह जानने से पहले आपको यह जानना होगा कि आपके शरीर का प्रकार कौन सा है। कुल तीन प्रकार के शरीर होते हैं। और आपके शरीर का प्रकार कौन सा है, यह समझने के लिए नीचे लिखी तीनों टाइप्स को ध्यान से पढ़िए।
इक्टोमोर्फ (Ectomorph)
यह पहला प्रकार होता है शरीर का, जिसमे पतली या नाजुक स्ट्रक्चर होती है। जो आमतौर पर लंबा और लचीला होता है,सपाट छाती होती है और आसानी से वजन नही बढ़ पता है। इनके कंधे झुके होते हैं, पोस्चर प्रॉब्लम होती है और इनको भरा-भरा शरीर प्राप्त करने के लिए काफी मसक्कत करनी होती है। इस शरीर पर चर्बी अधिक नहीं होती है। इस प्रकार का शरीर ectomorph कहलाता है। यदि आप इस प्रकार के शरीर वाले हैं तो आपको प्रोटीन की जरूरत ज्यादा होगी और आपको शरीर के सरेखन (alignment) पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत होगी। आपको flexibility वाले व्यायाम को अपने रूटीन में जोड़ना होगा।
मेसोमोर्फ (Mesomorph)
यह दूसरा टाइप है इसमे बॉडी का स्ट्रक्चर सख्त होता है। अच्छे तरीके से विकसित पेशियां होती है परिपक्व बनावट होती हैं। शरीर की अच्छी मुद्राएं होती है। यह शरीर वजन आसानी से हासिल कर लेता है! और फिर वह खो भी देता है!! मांसपेशियों काफी लचीली होती है।
इस तरह के शरीर की संरचना वाले को शरीर में जमने वाली वसा पर नजर रखनी होती है। क्योंकि आप की सतर्कता बेहद अच्छा संतुलन रख सकती है इस टाइप वाले शरीर को।
इंडोमोर्फ (Endomorph)
यह तीसरा टाइप होता है शरीर का। इस तरह का शरीर कोमल होता है। शरीर में गोलाई होती है। पेट वाले हिस्से पर काफी चर्बी होती है। मांसपेशियाँ लचीली होती है और पाचन तंत्र काफी एक्टिव होता है! जिस वजह से वजन कम करने में काफी समस्या होती है। इस प्रकार के शरीर वाले को नृत्याभ्यास के बाद भी कार्डियो जैसे वैट लॉस करने वाले प्रोग्राम पर काम करने की जरूरत होती है। इन्हें प्रोटीन और सब्जियों के साथ बहुत कम आहार लेने की आवश्यकता होती है।

कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप किस तरह के शरीर के मालिक है। आप स्वस्थ हो सकते हैं, आकार में और स्ट्रक्चर में बेहद खूबसूरत दिख सकते हैं और नृत्य भी बेहतरीन कर सकते हैं। बस अपने शरीर के प्रकार को समझें और इसके लाभ का उपयोग करें। कमियों पर गौर करें और उसे सुधारने का प्रयास करें आप सबसे अच्छे हो सकते हैं। इतना करने के बावजूद अगर आपके पास परफेक्ट डांसिंग फिगर नहीं है तो इसे पाने के आप नृत्य क्लास अटेंड कीजिए। व्यायाम कीजिए, निरन्तर कोशिश कीजिये और इतना विश्वास रखिए कि आप नृत्य के माध्यम से दुनिया का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं।अपने जीवन से दूसरे लोगों को भी प्रेरित कर सकते हैं।

शनिवार, 9 सितंबर 2017

कत्थक नृत्य के कुछ मिथक या उलझन

हम हमेशा हर क्षेत्र में किसी न किसी मिथक या उलझनों से रूबरू होते हैं, हमारा नृत्य जगत भी इससे अछूता नही है । यह उलझने जिनका जिक्र मैंने किया है वो सिर्फ कत्थक नृत्य से रिलेटेड उलझने नही है इन उलझनों को आप गायन , वादन या संगीत की अन्य विधाओं से भी रिलेट कर समझ सकते हैं, आइये जानते है इन उलझनों के बारे में.......
एक मशहूर मिथक है जिसे मैंने अक्सर सुना है कि क्या कथक सीखने से हमारी लम्बाई नही बढ़ेगी?
यह निष्कर्ष निकालना कि कत्थक हमारी ऊंचाई को सीधे प्रभावित करता है गलत है,अनुवांशिकी जैसे अधिक प्रभावी कारक है,जो हमारी ऊंचाई को प्रभावित करते हैं । यह सिर्फ एक मिथक है कि कत्थक नर्तक लंबे नहीं होते हैं अगर वह कत्थक सीखें। आप कई नर्तकों के इतिहास को खंगाल सकते हैं यह जानने के लिए कि कत्थक ने नर्तकों की लंबाई को प्रभावित किया है या नही। इसके लिए आप उनके माता -पिता की लंबाई देखिए उनके परिवार के सदस्यों की लंबाई देखिए। निस्संदेह आप पाएंगे कि नर्तक की लंबाई उनके माता या पिता जैसी है।

एक उलझन उन पेरेंट्स को होती है जिनकी संतान लड़का हो और वो अगर नृत्य सीखना चाहे क्या लड़के भी कत्थक सीख सकते हैं?
आप चुनने के लिए स्वतंत्र है कि आप क्या करना चाहते हैं और कत्थक हमारे द्वारा किया जाता हैं लोगों के द्वारा नहीं ।सोसायटी ने एक नियम बना दिया है कि नर्तन सीखने वाले पुरुष उचित पुरुष नहीं है लेकिन यह बिल्कुल सही नहीं है। यह बात जरूर है कि शास्त्रीय नृत्य रूपों को ज्यादातर महिलाओं और लड़कियों द्वारा किया जाता है लेकिन फिर भी पंडित बिरजू महाराज जैसे लोगों ने सोसायटी को सिखाया है कि मैं पुरुष हूं पर मैं बेहतर कर सकता हूं। कत्थक या कुकिंग सीखने के लिए जरूरी नहीं कि आप महिला हो, अगर आप सचमुच कुछ करना चाहते हैं तो सिर्फ दो मंत्र है "मैं इसे कर सकता हूं" और "मैं इसे करूंगा"। वास्तव में कत्थक के घरानों के संस्थापक और डेवलपर्स पुरुष नर्तक थे।
उदाहरण के लिए....
लखनऊ घराने से बिंदादीन महाराज, अच्छन महाराज, लच्छू महाराज, शंभू महाराज इत्यादि।
जयपुर घराना से लालू जी, कान्हू जी, इत्यादि।
बनारस घराना से जानकी प्रसाद, गोपीकृष्ण इत्यादि।

एक और क्वेश्चन आता है कि क्या मैं बहुत मोटी हूं तो भी कथक सीख सकती/सकता हूं ?
जी हां जवाब है कत्थक या किसी भी प्रकार कर नृत्य आप अपने भारी वजन के बावजूद निश्चित रुप से सीख सकते हैं। शुरू में आपके लिए संतुलन करना मुश्किल हो सकता है पर अगर आपके पास नई चीजें सीखने का साहस है तो वजन, आयु या कोई भी अन्य चीजें मुश्किल से मायने रखती है। एक अच्छे दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़िए और कड़ी मेहनत कीजिए। कत्थक के रूप में जहां भाव, मुद्रा और अन्य कई बॉडी पार्ट्स है जिनका बहुत सॉफ्ट प्रदर्शन होता है। शुरुआत में यह आपके लिए दिक्कत करेगा दूसरी ओर आप इस नृत्य में ततकार और चक्कर आपके शरीर को स्लिम करने में मदद भी कर सकता हैं, यह आपके लिए काम करेगा।

एक दूसरा क्वेश्चन जो कथक सीखने वालों को परेशान करता है कि मेरी उम्र 30 साल से ऊपर हो चुकी है क्या मैं भी कथक सीख सकती हूं या सकता हूं ?
जी हां सीखी जाने वाली किसी भी शास्त्रीय नृत्य में उत्साह और धैर्य की आवश्यकता होती है। यदि आप अपने आप में धैर्य और उत्साह महसूस करते हैं तो आप निश्चित रूप से पारंपरिक शास्त्रीय नृत्य फॉर्म आपके लिए आसान होगा। ज्यादा उम्र की वजह से आप कत्थक के माध्यम से व्यक्त होने वाले विभिन्न स्थितियों को समझने के लिए परिपक्व है। आपके लिए इस नृत्य को समझना ज्यादा आसान होगा  आप इस उम्र में भी बखूबी कथक नृत्य का प्रशिक्षण ले सकते हैं। आपकी परिपक्वता आपको अच्छी अभिव्यक्ति के साथ अच्छे तरीके से व्यक्त करने में मदद करेगी। इसका मतलब है कि भले ही आपने अपने बचपन में कत्थक सीखना शुरू नहीं किया। ज्यादा उम्र हो जाने पर सीखना शुरू करेंगे तो अपने बचपन से ज्यादा अच्छी गति से सीख सकते हैं। इसे आप एक आदर्श उम्र के रूप में लीजिए और जब चाहे आप सीखना शुरू कीजिए,बस आपको धैर्य रखना होगा और कठिन परिश्रम करना होगा।

कत्थक के छात्रों के लिये एक उलझन यह भी होती है कि क्या कथक नृत्य गुरु काफी सख्त होते हैं?
यह प्रश्न काफी अजीब है । यह सख्त होते हैं लेकिन बहुत सख्त नहीं होते। पर वह क्यों सख्त होते है क्योंकि कथक नृत्य में हाथ के आंदोलन, नृत्य के तत्कार में सुंदर और सटीक होना जरूरी है, जिस वजह से वह सख्त होते हैं। शास्त्रीय नृत्य रुप को जानने के लिए किसी भी छात्र या छात्रा को बहुत सारा अभ्यास, ईमानदारी, समर्पण, कड़ी मेहनत और अनुशासन की आवश्यकता होती है। आम तौर पर छात्रों को अपनी सीमा से ज्यादा करने का उत्साह भरते हैं,तो सख्ती करते दिखाई पड़ते हैं। प्राचीन काल में शास्त्रीय नृत्य केवल एक शौक नहीं था, पूजा मानते थे।  पूरी जिंदगी समर्पित कर देते थे। इसी वजह से आज के जो भी गुरु है जिन्होंने इसफॉर्म का प्रशिक्षण ले रखा है, वह अपने विद्यार्थियों से भी यही समर्पण की मांग करते हैं, जिस वजह से विद्यार्थियों में वह सख्त दिखाई पड़ते हैं।

एक और क्वेश्चन है कि मुझे कत्थक नृत्य सीखने में कितना वक्त लग जाएगा?
यह क्वेश्चन मेरे लिए तो काफी हास्यास्पद है मैं यहां आपको बता रही हूं यह निर्भर करता है कि आप कत्थक कैसे सीखना चाहते हैं सीखने के दो तरीके हैं पहला सिर्फ सीखने के लिए और दूसरा डिग्री प्राप्त करने के लिए। 
          कत्थक एक शास्त्रीय नृत्य है जो उत्तर भारत में उत्पन्न हुआ। तत्कार के साथ शुरू होता है, विभिन्न तालों में पेश किया जाता है, और कई प्रक्रियाओं को सिखाया जाता है। तोड़ा, परन, आमद कई चीज है जो आपको सीखनी होती है। यदि आप कोई भी परीक्षा नहीं देना चाहते हैं, और सिर्फ सीख लेते हैं तो वहां कोई पाठ्यक्रम नहीं होगा और आपका गुरु अपनी पसंद के अनुसार सिखाने के लिए स्वतंत्रता लेगा। क्या करना होगा कि आपको इसे कब स्टॉप कर देना है और आप आगे जानना चाहते हैं तो आप कितना समय तक सीखने में खर्च करेंगे। जितना सीखेंगे उतनी जटिलता बढ़ेगी,और कत्थक के विभिन्न पहलुओं से आप परिचित होंगे। लेकिन अगर आपने दूसरा मार्ग चुना है जिसमें आप डिग्री लेना चाहते हैं तो आपको इसमें वह चीजें दिखाएं जाएंगे जो सिलेबस में होती हैं। इससे इसमें अवधि बहुत अधिक हो जाएगी और आपको सब कुछ सीखना होगा बिना किसी एक पक्ष को छोड़े हुए। आपकी इसमें पसंद नहीं शामिल की जा सकती। सारी बारीकियांसीखनी होंगी जो सिलेबस में दिया हुआ है। इसलिए आप तय करें कि आप कौन से तरीके से सीखना चाहेंगे आप सिर्फ सीखना चाहते हैं या आपको इसमें मास्टर होना है।

एक खास सवाल जो अक्सर छात्रों के मन में उठता है कि मैं अपने वर्तमान गुरु की भावनाओं को बिना चोट पहुंचाए कैसे एक दूसरे गुरु से प्रशिक्षण लूं?
हां इस सवाल के जवाब के लिए पहले आप खुद से स्पष्ट कीजिए कि आप आगे कथक की कक्षाओं के लिए नया शिक्षक क्यों चाहते है।  अगर नया गुरु आपको चाहिए तो आप अपने वर्तमान गुरु से कभी भी झूठ ना बोले आप स्पष्ट रुप से बता सकते हैं अपनी मुश्किल के बारे में।  आपको लगता है कि आप उनके शिक्षण के तरीके से सहज नहीं है तो कहना आसान नहीं होगा लेकिन फिर भी आपको बताना चाहिए। अगर आप नहीं बताना चाहते तो कुछ भी और बोले लेकिन उनका अपमान कभी ना करें। यदि आपका घर कक्षाओं से दूर है तो इस बारे में आप बता सकते हैं या आप अपनी पढ़ाई के साथ आप इसे नहीं कर पा रहे हैं, अभ्यास में टाइम नहीं दे पा रहे हैं, तो इसे स्पष्ट रूप से बताएं। याद रखिए आप कितने भी गुरु बदल लें आप की शुरुआत किस गुरु ने की है, वह आपके गुरु ही रहेंगे उनका सम्मान करना सीखिए, क्योंकि पहले गुरु ने ही इस खूबसूरत कला का प्रदर्शन करने के लिए आपको तैयार किया है। आप नई चीजें सीखने के लिए दूसरे गुरु का चुनाव कर सकते हैं।
धन्यवाद।

मंगलवार, 5 सितंबर 2017

गुरु या शिक्षक - कर्तव्य तो समान ही है



गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वराः
गुरुरसाक्षात परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः।।
गुरु ब्रह्मा अर्थात सर्जक, विष्णु अर्थात पालक एवं शिव अर्थात दुर्गुणों के संहारक हैं । ऐसे गुरु जो साक्षात परब्रम्ह स्वरुप है उन्हें नमन है अतः गुरु का स्थान देवताओं के समतुल्य और कहीं-कहीं पर उनसे भी ऊपर माना गया है।

गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताए।

अर्थात गुरु व ईश्वर दोनों खड़े हैं। लेकिन गुरु ही महान है क्योंकि उसने ही हमें ईश्वर के विषय में ज्ञान दिया होता है। 'गु' का मतलब अंधेरा होता है और 'रु' का मतलब प्रकाश होता है । गुरु ही वह इंसान है जो हमें अंधकार से प्रकाश की ओर का पथ दिखाता हैं।,यानी अज्ञानता से ज्ञान की तरफ ले जाता है।
अब जरूरी नही की यह ज्ञान की पूंजी बाटने का काम संगीत से जुड़ा गुरु ही करता है। बल्कि स्कूल शिक्षण से जुड़ा शिक्षक भी करता है। किसी भी शिक्षक में या गुरु में कुछ गुणों का होना अत्यंत आवश्यक है ताकि वह अपने छात्र या शिष्य को उचित शिक्षा प्रदान कर सके। जिस तरह संगीत शिक्षा के क्षेत्र में गुरु एवं शिष्य के भावनात्मक एवं क्रियात्मक मिलन को परम लक्ष्य माना गया है। संगीत सदैव से ही गुरु मुख से ग्रहण की जाने वाली विद्या रही है। उसी तरह शिक्षकों का भी अपने छात्र को मानसिक रूप से तेज बनाना होता है। शिक्षक की भूमिका एक सीढ़ी की तरह होती है जिससे छात्र अपने जीवन में ऊंचाइयों को छूते हैं। शिक्षक का कार्य चरित्र निर्माण और आत्मविश्वास निर्माण का है। शिक्षक या गुरु का काम है और अपने छात्र या शिष्य को गुणी बनाना और अच्छे गुरु या शिक्षक में कुछ गुण होने चाहिए। शिक्षा प्रदान करने की प्रणाली और प्रभावशाली हो सके।
शास्त्र के अनुसार एक आदर्श गुरु का गुण है ।
1.स्मृति अर्थात memory
2.मति अर्थात Knowledge
3.मेधा अर्थात Intelligence
4.उहा  अर्थात Reasonablenessएवं
5.अपोह अर्थात Determination

                      इन सबके साथ -साथ गुरु को आस्तिक, शास्त्रज्ञ, सात्विक, सुसंस्कृत, मर्यादित, दानी, सहृदय, अनुशासित और उदार होना चाहिए।
शास्त्र के अनुसार पांच प्रकार की शिक्षण प्रणालियां बताई गई है
1.मत्स्य तंत्र
2.कुर्मा तंत्र
3.भ्रमरा तंत्र
4.मर्जर तंत्र
5.मर्कट तंत्र
1.मत्स्य तंत्र - जिस प्रकार मछली केवल अपने दृष्टि के द्वारा अपने अंडों को देती है उसी प्रकार इस तंत्र के अंतर्गत गुरु भी अपने व्यवहार एवं हावभाव के द्वारा शिष्य में अपनी संपूर्ण विद्या को प्रवाहित करता है और उसे स्वयं अपनी मेहनत द्वारा निकालने का अवसर देता है।
2.कूर्म तंत्र-जिस प्रकार कछुआ अपने अंडे को जमीन पर स्वतः विकसित होने के लिए छोड़ देता है। और पानी में रहकर भी उनके विषय में सोचता रहता है। उसी प्रकार इस तंत्र के अंतर्गत गुरु अपने शिष्य को विद्या के सभी पक्षों पर शिक्षित करता है,और एक दूरी बनाए रखता है। लेकिन वह शिष्य को बराबर अनुभूति कराता रहता है। कि शिष्य उसके लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
3.भ्रमर तंत्र - जिस प्रकार भंवरा एक कीड़े को लगातार डंक मारने जैसा व्यवहार करता है। लेकिन इस दौरान लगातार स्पर्श करने की प्रक्रिया में वह कीड़ा स्वयं एक भंवरा में परिवर्तित हो जाता है, उसी प्रकार इस तंत्र के अंतर्गत गुरु अपने शिष्य पर लगातार अपनी दृष्टि रखकर शिष्य को सोचने, सीखने, ज्ञान प्राप्त करके अपनी सामर्थ्य और गुणों का विकास करने योग्य बनाता है।
4.मर्जर तंत्र - जिस प्रकार बिल्ली अपने बच्चों को बड़ा होने तक अपने पास रखकर अपने सारे गुण उसे देती है। उसी प्रकार इस तंत्र के अंतर्गत गुरु अपने पास रखकर अपना पूरा ज्ञान उसे देकर परिपक्व होने पर उसे विकसित होने के लिए छोड़ देता है।
5.मर्कट तंत्र- जिस प्रकार वानर अपने बच्चों को अपनी छाती से चिपकाये रहती है, और उसे जब और जितनी आवश्यकता होती है उतना दूध पिलाती है, उसी प्रकार इस तंत्र के अंतर्गत गुरु अपने शिष्य को अपने पास जब और जितनी आवश्यकता होती है शिक्षा प्रदान करता है।