सोमवार, 28 अगस्त 2017

जब भी नृत्य की शुरुआत करें क्लासिक्ल नृत्य से हीं करें

अगर आप या आपके पेरेंट्स आपको बेहतर नर्तक बनाना चाहते हों तो इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि आप की शुरुआत क्लासिकल नृत्य से ही होना चाहिए क्योंकि क्लासिकल सीखने से आप का दिमाग एक खास माइंड सेट में ढल चुका होता हैं और आपके अंदर धैर्य विनम्रता जैसे गुणों का विकास होता है।
कहीं ना कहीं आज के इस दौर में हम जी रहे हैं जहां बेहतरीन तकनीक बहुत अंदर तक जज्ब हो चुका है और हमारा धैर्य खत्म होता जा रहा है हमें सारी चीजें तुरत-फुरत चाहिए होती है, देरी होना अच्छा नहीं लगता अब, लेकिन जिस तरह से हमें आज भी अच्छे जॉब या बेहतर जीवनसाथी या किसी बीमारी से बाहर आने जैसी कई चीजों का जिन पर हमारा कोई कंट्रोल नही हम उनका इंतजार करते हीं हैं ! भारतीय शास्त्रीय नृत्य आपको इन्हीं सब चीजों के लिए धीरज सिखाता है उनके कठिन शब्दों से निपटने में मददगार साबित होता है. इस नृत्य में आप वर्तमान समय में रहना भी सीख जाते हैं. यह नृत्य हमारे मन ,आत्मा और शरीर के कनेक्शन यानी जुड़ाव को समझने में भी मदद करता है. हमारा मन जो काफी चंचल होता है जो हर वक्त एक डाल से दूसरी डाल पर जाना चाहता है । इस स्थिति से क्लासिकल नृत्य हमें बाहर निकाल सकता है क्योंकि प्रशिक्षण के दौरान हमें एक मुद्रा में दृढ़ता से खड़े होना, रूकना सिखाया जाता है.जब आप इन नृत्य रूपों का अभ्यास करते हैं, तो आप मूल रूप से अपने दिमाग को प्रशिक्षण देने के लिए एक समय पर विस्तारित अवधि के लिए ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। यह आपको हमेशा वर्तमान में रखेगा और वर्तमान क्षण के बारे में जानकारी देगा. 

बहुत सारे ऐसे नृत्य हैं जिसको अभ्यास किया जाता है और जिससे आपको अपना वजन कम करने में मदद मिलती है । लेकिन जब आप भारतीय शास्त्रीय नृत्य रूपों का अभ्यास करते हैं, तो आप न केवल मांसपेशियों की ताकत और धैर्य का निर्माण करते हैं, बल्कि सांस लेना भी सीखते है। एक बार जब आप नृत्य कक्षा में शामिल हो जाएं तो इसे जरूर सिख कर सुधारना चाहिए।
भारतीय शास्त्रीय नृत्य सिर, गर्दन और अंग समन्वय को धीरे धीरे पढ़ते हैं और फिर तेजी से समझने में सिद्धहस्त हो जाते हैं जैसे कि आप अपने बाएं और दायें दिमाग का इस्तेमाल विभिन्न चीजों को करने के लिए करते हैं। वैसे अलग-अलग चीज़ों को एक ही समय में करने के लिए अपने बाएं हाथ और दाएं हाथ को एक समय मे एक साथ इस्तेमाल करना कठिन है पर असंभव नही। उचित अभ्यास से आप अपने सभी अंगों को इस तरह से प्रशिक्षण दें सकते हैं और फिर अपने मस्तिष्क के कनेक्शनों के चमत्कार को भी देख सकते है!!
आप चाहते हैं कि आप खुद को कंट्रोल कर सकें यानि आप अपने मन के गुलाम न हो बल्कि आपका मन आपका गुलाम हो तो यह क्लासिकल नृत्य से संभव है। अपने दैनिक जीवन में, आप क्रोध, उदासी, खुशी, प्यार, उत्तेजना और इसी तरह के कई भाव महसूस करते हैं। भारतीय शास्त्रीय नृत्यों से आप इन भावनाओं को एक रेचक रिहाई देते हैं। कई भावनात्मक भूमिकाएं करते समय, आप भावनाओं के बीच संबंध को समझना शुरू करेंगे - मन और शरीर। क्लासिकल नृत्य आपकी भावनाओं को बेहतर ढंग से देखने या समझने में आपकी सहायता करेगा, और निश्चित रूप से, आप प्रतिक्रिया को रोक देंगे, और आपका खुद पर आपके अनुरूप ही कंट्रोल होगा,भावनाएं आपके काबू में होंगी। हर नृत्य का अपना अलग साइंस होता है, हर नृत्य में इस्तेमाल होने वाले मुद्राएं शारीरिक पोस्चर अलग-अलग होते हैं जिससे अलग-अलग बॉडी पार्ट्स और मसल्स प्रभावित होते हैं। आप अपनी इच्छा अनुसार कोई भी क्लासिकल नृत्य का फॉर्म चुन लीजिए, और फिर इनका नियमित अभ्यास आपके शरीर को फ्लेक्सिबल बनाएगा और मुद्राओं से बेहतर सामंजस्य बनाएगा। अगर आप क्लासिकल नृत्य सीखना शुरू करते हैं तो आप नेचुरल मुद्राओं का सामंजस्य बॉडी से समझने लगेंगे और जिस तरह क्लासिकल नृत्य में विभिन्न तरीके से मुद्राएं होती है यानी ज्यादा से ज्यादा बॉडी पार्ट्स का इस्तेमाल होता है इतना किसी और नृत्य फॉर्म में एक साथ शरीर के हर अंगों का इस्तेमाल शायद ही होता है, इसलिए अगर आप क्लासिकल नृत्य का प्रशिक्षण ले लेते हैं तो आपके लिए दुनिया के किसी भी नृत्य को सीखना और समझना आसान हो जाएगा। क्लासिकल नृत्य के साथ सबसे आश्चर्यजनक पहलू यह है कि आध्यात्मिक स्तर पर भी यह आपको उन्नत बनाता है आपके अंदर इतनी समझ पैदा करता है कि आप अपने शरीर, आत्मा और परमात्मा को समझ सकें, महसूस कर सकें।
इन सबके साथ-साथ क्लासिकल नृत्य का और भी बहुत बड़ा फायदा होगा जिसे शायद अभी मैंने समझा नही है या मुझे मालूम ही न हो और फिर मेरी एक आर्टिकल में उन सबको समेटना संभव भी नहीं है! तो इतने बड़े फायदों के साथ आप जब भी अपनी शुरुआत करें तो क्लासिकल नृत्य के साथ करें। उचित गुरु तलाश करें और पूर्ण समर्पण के साथ इस क्लासिकल नृत्य का प्रशिक्षण लें और इसका लाभ उठाएं।
धन्यवाद

शनिवार, 26 अगस्त 2017

तालों में विभिन्न लयकारियाँ लिखने का तरीका

यहां मैं आपको तीनताल के माध्यम से बताउंगी कि तरह-तरह की लयकारियों को कैसे लिखें।सबसे पहले ठाह लय को तीनताल में समझिये। तीनताल में कुल १६ मात्राएँ और ४ विभाग होतें हैं, जिसमे ३ तालियां पहली,पांचवी और तेरहवी मात्रा पर आती है. तथा खाली नवी मात्र पर दिखाई जाती है . निचे तीनताल की ठाह लय लिपिबद्ध किया गया है जिसका चित्र निम्न हैं .
ठाह लय तीनताल 
अब हमें तीनताल की दुगुन को लिपिबद्ध करना है.इसके लिए सबसे पहले तीनताल के पुरे आवर्तन को दो बार बिना विभाग लगाये या कोई मात्र लगाये दो बार लिख लेंगे.फिर जैसे ठाह लय में एक मात्रा में एक बोल को लिखा गया है वैसे ही दुगुन लय के लिए एक मात्रा में दो बोल लिखेंगे और उसे निचे से अर्ध चंद्राकर चिन्ह से घेर देंगे.  जैसे चित्र में है ―›  (  ͜  ) दुगुन लय के लिए चित्र को देखें....
दुगुन लय तीनताल 
अब तीनताल की दुगुन के बाद तीनताल की तिगुन को लिपिबद्ध करना है. जैसे दुगुन में हमने एक मात्र में दो बोल को चंद्राकर चिन्ह से घेरा वैसे ही तिगुन में एक मात्रा में तिन बोलों को चंद्राकर में घेरना है. इसके लिए सबसे पहले तीनताल के पुरे आवर्तन को तीन बार बिना विभाग लगाये या कोई मात्र लगाये लिख लेंगे. और तिन बोलों को चंद्राकर में घेरते हुये मात्रा और ताली खाली का चिन्ह लगा कर विभाग बाँट देंगे. तिगुन लय के लिए चित्र को देखें....
तिगुन लय तीनताल
अब तीनताल की तिगुन के बाद तीनताल की चौगुन को लिपिबद्ध करना है. जैसे दुगुन में हमने एक मात्र में दो बोल को चंद्राकर चिन्ह से घेरा वैसे ही चौगुन में एक मात्रा में चार बोलों को चंद्राकर में घेरना है. इसके लिए सबसे पहले तीनताल के पुरे आवर्तन को चार बार बिना विभाग लगाये या कोई मात्र लगाये लिख लेंगे. और चार-चार बोलों को चंद्राकर में घेरते हुये मात्रा और ताली खाली का चिन्ह लगा कर विभाग बाँट देंगे.चौगुन लय के लिए चित्र को देखें....
चौगुन लय तीनताल 
इसी तरह हम किसी भी ताल की दुगुन तिगुन या चौगुन लय उपरोक्त विधि से बना सकते हैं .

शुक्रवार, 25 अगस्त 2017

नृत्य और हमारी मुद्राओं का संबंध

नृत्य के माध्यम से, मानव शरीर एक साधन के रूप में कार्य करता है जो खुद को आंदोलन के दायरे से अर्थ के दायरे में परिवर्तित करता है। परिवर्तन की इस प्रक्रिया में शरीर के प्रत्येक अंग और उपांग शामिल होते हैं। थीम की मांग के अनुसार हाथ, पैर, हथेली, पैर, चेहरे के आंदोलन पर जोर दिया जाता है। यह मानव शरीर के इन सभी भागों के तालबद्ध ढंग से प्रेरित और जानबूझ कर किया गया विशिष्ट आंदोलन है, जो नर्तक अथवा दर्शकों के लिए एक दृश्य छवि बनाता है। इस प्रकार दर्शकों की आंखों के सामने नृत्य एक विचार या सोंच के रूप में शुरू होता है और एक उत्पादक क्रिया में समाप्त होता है। किसी को लिखने के लिए जैसे वर्णमाला की जरूरत होती है, पेंटिंग के लिए ब्रश की वैसे ही समझा जाए तो एक नर्तकी का शरीर भी उपकरण हैं और नक्काशीदार छवि / कोरियोग्राफी नर्तकी की जरूरत है. यह सब उसकी भाषा है, जो उसकी अभिव्यक्ति के लिए शब्दावली के रूप में कार्य करता है। हर संस्कृति के लिए यह व्यवहार और व्यवहार पैटर्न के एक सेट के साथ सहूलियत प्रदान करता है ये निर्धारित व्यवहार पैटर्न उन्हें उसी समाज के साथ ही साथ अन्य समाजों के समूहों और उप-समूहों के सदस्यों से अलग करने में मदद करते हैं। अभिव्यक्ति के ये तरीके न केवल दैनिक विचार-विमर्श को प्रभावित करते हैं बल्कि रचनात्मक विचार-विमर्श को भी प्रभावित करते हैं। इस प्रकार इस क्षेत्र की उत्पत्ति कला रूपों द्वारा किया जाता है।
भारत जैसे एक बड़े उप-महाद्वीप में, विभिन्न विविध संस्कृतियों ने संस्कृतियों के कई कलाओं का मार्ग प्रशस्त किया।विभिन्न शास्त्रीय नृत्य,भारत में अपनी तकनीक और कार्यप्रणाली की वजह से एक ही छत के नीचे आते हैं और एक ही समय में इन तकनीकों की अनूठी विशेषताओं के रूप में कार्य करने वाली विशेषताओं के कारण एक दूसरे से भिन्न इन नृत्यों को, भिन्न करते हैं। उदाहरण के लिए 'इशारा भाषा' का प्रयोग लगभग सभी नृत्यों में एक ही मुद्रा से होती है । कुचीपुड़ी, भरतनाट्यम, ओडिसी, कथकली और मोहिनीअट्टम जैसे लगभग सभी शास्त्रीय नृत्य हाथों के इशारों के लिए एक प्रमुख महत्व देते हैं। कथकली में, जो कि एक नृत्य-नाटक के रूप में जाना जाता है, ये इशारों का इस्तेमाल प्रत्येक शब्द और अर्थात्मक शब्दों की व्याख्या करने के लिए किया जाता है। हालांकि इशारों की भूमिका एक समान है, लेकिन इस तरह के विवरणों में अन्य रूपों में उपयोग नहीं किया जा सकता है। हालांकि, यह हथेली से भी इस अर्थ को प्रस्तुत किया जाता है और दक्षिण भारत में अभिव्यक्ति का सामना करने वाले कला क्षेत्र में यह मुद्रा चेहरे के माध्यम से भी की जाती है, जबकि कथक और मणिपुरी जैसे उत्तर भारतीय नृत्य रूपों में इशारों एक तरह की भूमिका निभाते हैं। और वहां हाथों से किया जाने वाला भाव पूरे शरीर के माध्यम से किया जाता है।इसलिए भी एक मानव शरीर के विभिन्न सममूल्य के इस्तेमाल के बारे में नृत्य के माध्यम से जान सकता है। यह भारत के लिए अद्वितीय है कि हमारे पास इस देश के सभी शास्त्रीय नृत्य रूपों पर एक परिभाषित साहित्य है। भरतमुनी अपने नाट्यशास्त्र में हर तरह के आंदोलन की बात करते हैं और मंच पर इनका अपना-अपना उद्देश्य है। अनिवार्य रूप से सभी भारतीय नृत्य रूप नाट्यशास्त्र की भाषा से अपने अक्षर को निकालने और अपने स्वयं के अभिव्यक्ति में इन अक्षर को ढाल सकते हैं। इस प्रकार हम हर नृत्य रूप से मिलते हैं परिचित होते हैं, जो कि भारत की परंपरा के साथ मजबूत संबंध को दर्शाती  हैं।


बुधवार, 9 अगस्त 2017

भरत मुनि के नाट्य शास्त्र अनुसार कथक नृत्य में करण का प्रयोग


हाथ और पैरों का संयुक्त रुप से लयबद्ध संचालन नृत्य में करण कहलाता है दो करणों के कंबीनेशन से एक मातृका बनती है और दो,तीन या कभी-कभी चार मातृकाओं के संजोग से एक अंग हार बनता है। तीन करणों से एक कलापक बनेगा चार करणों के संजोग से संडका तथा पांच करणो के संजोग से एक समघटका का निर्माण माना जाता है। जबकि एक अंग हार में छह सात आठ या नौ कारणों को समाहित करके मुद्राएं बनती है।
वैसे यहां करण का उपयोग करने की बात मैं कत्थक में कर रही हूं जो बेहद कम है, क्योंकि कथक में अभिनय से ज्यादा नृत्य है। खासकर इसमें तत्कार,चक्कर और ताल/ लयकारीयों पर ध्यान ज्यादा दिया जाता है,जिस वजह से करण या अंगहार अभिनय प्रधान होने से कथक में इनका प्रयोग ना के बराबर है। पर नए परिप्रेक्ष्य में कहा जाए तो कत्थक नृत्य में करण का प्रयोग करने से इस नृत्य की और भी सुंदरता बढ़ सकती है इस नृत्य में चमत्कार तो पहले से हीं है।दुनिया में नृत्य के जितने भी प्रकार है सबका लक्ष्य एक ही है कि मंच पर रसोत्तपति हो और कलाकार तथा दर्शक एक ही इमोशन को महसूस करें व आनंद लें।नृत्य के दौरान एक नर्तक जो भी शारीरिक मुद्रा बनाता या बनाती है,वह मुद्रा जो शरीर की संरचना को खूबसूरत दिखाता है, व्यक्तित्व को प्रभावशाली बनाता है, वह करण कहलाता है।एक या बहुत से करणों से मिलकर बनी भाव भंगिमा अंगहार कहलाती है। करण और अंगहार दोनों हीं नृत्य और नर्तक दोनों के ग्रेस और खूबसूरती को बढ़ाते हैं। आइए जानते हैं कुछ करण की मुद्राओं और उनके उपयोग के बारे में-

समनखा SAMANAKHA- भरत मुनि के नाट्य शास्त्र अनुसार प्रयोग मनोरंजन और आश्चर्य को दिखाने के लिए इस मुद्रा का प्रयोग नृत्य में किया जाता है। यह मुद्रा मंच पर नृत्य आरंभ करने से पूर्व की भी है जहां नर्तक खड़ा होता है।












 लीन LINA- नाट्य शास्त्र के अनुसार यह मुद्रा हिंदुओं के देवता से प्रार्थना या पूजा करने के दौरान बनाई जाती है। या धन्यवाद देने के लिए, आभार प्रकट करने के लिए भी बनाई जाती है।













विषकम्भा VISHKAMBA- इस मुद्रा का प्रयोग नृत्य में स्त्री के वक्षस्थल को दिखाने के लिए या अपने प्रियतम से अलगाव/जुदाई दिखाने के लिए भी इस मुद्रा का प्रयोग किया जाता है।













कटिछिन्न KATICHINNA- मनोरंजन और आश्चर्य दिखाने के लिए नृत्य में इस करण का प्रयोग किया जाता है।















अर्ध रेचिता ARDHA RECHITA- इस मुद्रा का प्रयोग नृत्य में अपने प्रियतम को खुशी से देखने या निहारने के लिए जाता है। इस मुद्रा का प्रयोग अपना परिचय देने के लिए भी किया जाता है













 गंड सूची GANDA SUCHI- नृत्य में करण की इस मुद्रा का प्रयोग प्रार्थना करने, सुनने या विनम्रता से खड़े होने के लिए प्रयोग किया जाता है। 













अवर्ता AVARTA- धन के स्वामी कुबेर को दर्शाने के लिए या उत्कृष्टता या श्रेष्ठता को दिखाने के लिए इस मुद्रा का प्रयोग किया जाता है। 













डोलापदा DOLAPADA- करण की इस मुद्रा का प्रयोग झुला या पालना के मूवमेंट को दिखाने के लिए किया जाता है।  या इसका प्रयोग अचानक से डर जाने के अभिनय के लिए भी किया जाता है।













गजक्रीडिता GAJAKRIDITA- जैसा कि नाम से ही जाहिर है हाथी के कान को दिखाने के लिए इस मुद्रा का प्रयोग किया जाता है। अगर हाथों को थोड़ा सा ऊपर की ओर इंडिकेट करें तो इस मुद्रा का प्रयोग क्राउन यानी ताज को दिखाने के लिए भी किया जाता है। ताज के अलावे सिर, केश,जुड़ा वगैरह को भी दिखाने के लिए किया जाता है।











दंडा रेचिता DANDA RECHITA- दंड रेचिता का प्रयोग शक्ति और सामर्थ्य दिखाने के लिए या भगवान विष्णु के सर्प के बिछावन को दर्शाने के लिए भी इस मुद्रा का प्रयोग किया जाता है।













वृषभा क्रीडिता VRISHABHA KREEDITA- करण की इस मुद्रा का प्रयोग चेहरे को दिखाने के लिए या अपने खूबसूरत बाल और उनका घुंघरालापन दिखाने के लिए इस मुद्रा का प्रयोग किया जाता है ।