बुधवार, 28 जून 2017

ऑनलाइन कत्थक सीखें 1

चैप्टर-1
प्रणाम/नमस्कार
कथक में अभिवादन को सलामी या नमस्कार कहते हैं. इसी से नृत्य प्रारंभ होता है. वैसे तो कथक में प्रणाम,नमस्कार,सलामी का बड़ा स्वरूप है. नृत्य पर मुगलों के प्रभाव से सलामी तोड़ेे नाचे जाते थे और वर्तमान में हिंदुओं का प्रभाव होने से सलामी तोड़ो की जगह बहुतायत में नमस्कार और गुरु या ईश वंदना ने ले ली है. यहां मैं नमस्कार/सलामी,तोड़ो से करने की बात नहीं कर रही हूं.सबसे पहला प्रणाम जो नृत्य के रियाज के समय या शिक्षा ग्रहण करने के समय किया जाता है,मैं उस प्रणाम के बारे में बता रही हूं.
जब भी आप रियाज करें तो उसके पहले प्रणाम करें, और नृत्य समाप्ति पर भी प्रणाम करें. यह प्रणाम आप मंच पर नृत्य आरंभ करने से पहले भी करें. सलामी,नमस्कार और वंदना के बारे में आगे के चैप्टर में बात होगी.
उत्पत्ति स्थान पर शिखर हस्तमुद्रा बनाएं. फिर कंधे से गोल घुमाते हुए पंजों पर संतुलन बनाते हुए बैठे,फिर पहले मंच/फर्श पर हाथों से पताका मुद्रा बनाते हुए स्पर्श करें. इसके बाद पताका मुद्रा बनाते हुए अपनी पलकों को स्पर्श करें. यह हमारा मातृभूमि के लिए सम्मान हुआ.
पलको को छूते समय सीधे खड़े हो जाएं. पैरों की स्थिति समपाद में होगी. फिर सबसे पहले सर के ऊपर पुष्पम बनाते हुए भगवान को प्रणाम करें.
अंत में कंधों से हाथों को घुमाकर उत्पत्ति स्थान पर अंजलि की मुद्रा बनाकर प्रणाम करें. यह प्रणाम गुरु के लिए हुआ.अगर आप मंच पर प्रस्तुति दे रहे हैं तो गुरु के लिए और दर्शक दोनों के लिए है. बस दर्शक के लिए अंजली मुद्रा बनाए हुए हाथों को बाईं कंधे की तरफ से दाहिने कंधे की ओर लाकर उत्पत्ति स्थान पर प्रणाम करना है.

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