बुधवार, 21 जून 2017

प्राणायाम और कथक

योग एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है। योग करने से शारीरिक और मानसिक स्थितियों में जुड़ाव होता है,जिससे मन शांत और स्थिर होता है। बिल्कुल यही चीज का अनुभव हमें कत्थक में भी होता है। इस नृत्य में शरीर और मन को एक लय में रखते हैं और आत्मिक सुख की अनुभूति प्राप्त करते हैं। योग और कत्थक दोनों का अपना ही शास्त्र है। वैसे तो योग और कथक की परिभाषा करना कठिन कार्य है, और साथ ही इन विद्याओं को साधना भी अत्यंत कठिन है। प्रत्येक प्रसंग का विस्तार पूर्वक अध्ययन संभव नहीं।
बौद्ध धर्म के अनुसार कहा गया है "कुशल चितैकग्गत योगः" अर्थात कुशल चित्त की एकाग्रता योग है।


कथक के नवीनतम सूफी कथक के विकास में भारतीय योग का काफी प्रभाव है। इन दोनों में ही शारीरिक मुद्राओं यानी आसन और श्वास नियंत्रण यानी प्रणायाम को अनुकूलित किया है। वैसे आप कैसे लाभ में योगासन और प्राणायाम द्वारा कत्थक नृत्य में?? पिछले आर्टिकल "प्राणायाम से बढाये अपने नृत्य प्रदर्शन की शक्ति"  मैं मैंने प्राणायाम से मानसिक शक्ति को प्रबल बनाने को कहा था। लक्ष्मीनारायण गर्ग द्वारा रचित किताब कत्थक नृत्य में भी रूप सौंदर्य चैप्टर में व्यायाम और प्राणायम की आवश्यकता कत्थक नृत्य के लिए बताई गई है।
योगासनों से कत्थक में लाभ
कत्थक नृत्य में सिद्धहस्त होने के लिए बहुत छोटी बड़ी चीजों की आवश्यकता है। शारीरिक स्तर पर एक कुशल नर्तक में कुछ चीजें हो जिसमें आपका खूबसूरत और लचीला शरीर ,सुंदर चमकती त्वचा, अच्छा स्वास्थ्य ,आदर्श वजन( कृशकाय शरीर या भारी शरीर दोनों ही कथक नृत्य के लिए सही नहीं है) होनी चाहिए। वही मानसिक स्तर पर आत्म विश्वास, याददाश्त, सुंदर विचार, प्रभावशाली वाणी, शांति, खुशी और ऊर्जा होनी चाहिए। शारीरिक और मानसिक स्तर पर इन जरूरी गुणों को पूर्ण करने का काम योगाभ्यास और प्राणायाम करते हैं। योग में कई आसान है जिन्हें आप करें तो शारीरिक रूप से आप समृद्ध होंगे  और ऊपर लिखित सभी चीजें या उससे कहीं ज्यादा फायदा आपको मिलेगा। वहीं प्रणायाम से आप अपना आत्मिक विकास कर सकते हैं। आप अपनी आत्मा को पवित्र करने की कोशिश करेंगे तो स्वतः आप आत्मविश्वासी और वाणी से प्रतिभाशाली होंगे। आपका मन शांत होने से याददास्त अच्छी होगी और आप एक विनम्र नृत्य के कलाकार बन सकेंगे।
योग और कथक नृत्य मुद्राओं की समानता
मुद्रा : जहां योग में मुद्रा एक प्रतीकात्मक किया अनुष्ठानिक भाव-भंगिमा है। वही शास्त्रीय नृत्य में  मुद्रा (gesture) यानी हस्त मुद्रा जैसे शब्द का प्रयोग किया जाता है। कथक नृत्य में मुद्राएं दो प्रकार की है पहली असंयुक्त मुद्रा जो 24 है,और दूसरी संयुक्त मुद्रा जो 13 है। आमतौर पर दोनों हाथों से और उंगलियों से मुद्राएं बनती है। योग मुद्रा में जो ब्रह्म मुद्रा में हाथों से मुद्रा बनती है। उसकी समानता कत्थक में पल्लव मुद्रा के समान है। कत्थक नृत्य की पताका मुद्रा योग के अभय मुद्रा से मिलती-जुलती है। योग में इसका अर्थ सुरक्षा, शांति, परोपकार, तथा भय को दूर करने वाला का प्रतिनिधित्व करता है। वही पताका मुद्रा में भीड़,वर्षा,रात्रि ,गर्मी इत्यादि को दिखाया जाता है। योग में एक और मुद्रा है जिसका नाम है पृथ्वी मुद्रा या मुद्रा कत्थक की मयूर मुद्रा के समान होती है पृथ्वी मुद्रा करने से गैस, गला, आंख इत्यादि के रोगों में लाभ मिलता है तथा खूबसूरती बढ़ती है चेहरे में चमक आती है। नृत्य के मयूर मुद्रा से मयूर,लता,बिंदी,आंसू इत्यादि का अर्थ दिखाने के लिए मयूर हस्त मुद्रा का प्रयोग किया जाता है। बनते दोनो एक ही तरीके से है पर दोनों का अर्थ और प्रभाव अपने क्षेत्र में अलग -अलग है। योग के करण मुद्रा के समान ही कथक नृत्य ।में सिंहमुख मुद्रा बनती है।जहाँ योग में करण मुद्रा का प्रयोग करने से यह बीमारी और नकारात्मक विचारों को दूर करती है।पर यह मुद्रा पूरी तरह सिंहमुख मुद्रा के समकक्ष नही बनती है, क्योकि पश्चिमी देशों में करण मुद्रा अनामिका और मध्यमा उंगलियो को मोड़कर बनती है बाकी उंगलिया सीधी तनी हुई होती है, जबकि कुछ देशों में यह मुद्रा सिंहमुख मुद्रा समान अनामिका मध्यमा के साथ अंगूठा भी मुडा होता है। सिंहमुख मुद्रा से हम शेर का चेहरा,अग्नि,हाथी,खुशबू,घास,फूल इत्यादि को दर्शाते है।
         यह तो हुई कुछ चन्द मुद्राएं जो योग में समान रुप से बनाई जाती है और अपने अपने क्षेत्र में लाभ देती है। एक विस्तृत अध्ययन करने पर हो सकता है हमें ऐसे बहुत से साम्य और लाभ  देखने को मिलें। इस आर्टिकल में कुछ त्रुटिया हो सकती है इसके लिए मुझे क्षमा करेंगे। परंतु अपने विचारों से मुझे अवगत अवश्य कराएं ।
धन्यवाद।

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