हाथ और पैरों का संयुक्त रुप से लयबद्ध संचालन नृत्य में करण कहलाता है दो करणों के कंबीनेशन से एक मातृका बनती है और दो,तीन या कभी-कभी चार मातृकाओं के संजोग से एक अंग हार बनता है। तीन करणों से एक कलापक बनेगा चार करणों के संजोग से संडका तथा पांच करणो के संजोग से एक समघटका का निर्माण माना जाता है। जबकि एक अंग हार में छह सात आठ या नौ कारणों को समाहित करके मुद्राएं बनती है।
वैसे यहां करण का उपयोग करने की बात मैं कत्थक में कर रही हूं जो बेहद कम है, क्योंकि कथक में अभिनय से ज्यादा नृत्य है। खासकर इसमें तत्कार,चक्कर और ताल/ लयकारीयों पर ध्यान ज्यादा दिया जाता है,जिस वजह से करण या अंगहार अभिनय प्रधान होने से कथक में इनका प्रयोग ना के बराबर है। पर नए परिप्रेक्ष्य में कहा जाए तो कत्थक नृत्य में करण का प्रयोग करने से इस नृत्य की और भी सुंदरता बढ़ सकती है इस नृत्य में चमत्कार तो पहले से हीं है।दुनिया में नृत्य के जितने भी प्रकार है सबका लक्ष्य एक ही है कि मंच पर रसोत्तपति हो और कलाकार तथा दर्शक एक ही इमोशन को महसूस करें व आनंद लें।नृत्य के दौरान एक नर्तक जो भी शारीरिक मुद्रा बनाता या बनाती है,वह मुद्रा जो शरीर की संरचना को खूबसूरत दिखाता है, व्यक्तित्व को प्रभावशाली बनाता है, वह करण कहलाता है।एक या बहुत से करणों से मिलकर बनी भाव भंगिमा अंगहार कहलाती है। करण और अंगहार दोनों हीं नृत्य और नर्तक दोनों के ग्रेस और खूबसूरती को बढ़ाते हैं। आइए जानते हैं कुछ करण की मुद्राओं और उनके उपयोग के बारे में-
●समनखा SAMANAKHA- भरत मुनि के नाट्य शास्त्र अनुसार प्रयोग मनोरंजन और आश्चर्य को दिखाने के लिए इस मुद्रा का प्रयोग नृत्य में किया जाता है। यह मुद्रा मंच पर नृत्य आरंभ करने से पूर्व की भी है जहां नर्तक खड़ा होता है।
●विषकम्भा VISHKAMBA- इस मुद्रा का प्रयोग नृत्य में स्त्री के वक्षस्थल को दिखाने के लिए या अपने प्रियतम से अलगाव/जुदाई दिखाने के लिए भी इस मुद्रा का प्रयोग किया जाता है।
●कटिछिन्न KATICHINNA- मनोरंजन और आश्चर्य दिखाने के लिए नृत्य में इस करण का प्रयोग किया जाता है।
●अर्ध रेचिता ARDHA RECHITA- इस मुद्रा का प्रयोग नृत्य में अपने प्रियतम को खुशी से देखने या निहारने के लिए जाता है। इस मुद्रा का प्रयोग अपना परिचय देने के लिए भी किया जाता है
●गंड सूची GANDA SUCHI- नृत्य में करण की इस मुद्रा का प्रयोग प्रार्थना करने, सुनने या विनम्रता से खड़े होने के लिए प्रयोग किया जाता है।
●अवर्ता AVARTA- धन के स्वामी कुबेर को दर्शाने के लिए या उत्कृष्टता या श्रेष्ठता को दिखाने के लिए इस मुद्रा का प्रयोग किया जाता है।
●डोलापदा DOLAPADA- करण की इस मुद्रा का प्रयोग झुला या पालना के मूवमेंट को दिखाने के लिए किया जाता है। या इसका प्रयोग अचानक से डर जाने के अभिनय के लिए भी किया जाता है।
●गजक्रीडिता GAJAKRIDITA- जैसा कि नाम से ही जाहिर है हाथी के कान को दिखाने के लिए इस मुद्रा का प्रयोग किया जाता है। अगर हाथों को थोड़ा सा ऊपर की ओर इंडिकेट करें तो इस मुद्रा का प्रयोग क्राउन यानी ताज को दिखाने के लिए भी किया जाता है। ताज के अलावे सिर, केश,जुड़ा वगैरह को भी दिखाने के लिए किया जाता है।
●दंडा रेचिता DANDA RECHITA- दंड रेचिता का प्रयोग शक्ति और सामर्थ्य दिखाने के लिए या भगवान विष्णु के सर्प के बिछावन को दर्शाने के लिए भी इस मुद्रा का प्रयोग किया जाता है।
●वृषभा क्रीडिता VRISHABHA KREEDITA- करण की इस मुद्रा का प्रयोग चेहरे को दिखाने के लिए या अपने खूबसूरत बाल और उनका घुंघरालापन दिखाने के लिए इस मुद्रा का प्रयोग किया जाता है ।
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